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श्री मुनि आदर्श कन्या इंटर कॉलेज , कोटवन, मथुरा

श्री आत्म मुनि जी

प्राचीन भारत में विद्यालय गुरुकुल के रूप में होते थें। ये अक्सर गुरु के घर या किसी मठ में होते थें। मुग़लों के ज़माने में, बच्चों को शिक्षित करने के लिये 'मदरसों' का आरम्भ किया गया था। अंग्रेज़ी दस्तावेज़ों के अनुसार, १८वीं सदी में देश में विद्यालय सामान्य थें। पूरे देश में मंदिर, मस्जिद और गांव में एक विद्यालय का होना सामान्य था। इनमें पढ़ना, लिखना, धर्मशास्त्र, क़ानून, खगोल/एस्ट्रोनॉमी, आचार-विचार, जीव, चिकित्सा विज्ञान और धर्म के बारे में सिखाया जाता था। विद्यालय वह स्थान है, जहाँ शिक्षा ग्रहण की जाती है। "विद्यालय एक ऐसी संस्था है, जहाँ बच्चों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं नैतिक गुणों का विकास होता है। ' विद्यालय' शब्द के लिए आंग्ल भाषा में 'स्कूल' शब्द का प्रयोग होता है

उद्देश्य

1.     छात्रों में हिन्दी, संस्कृत तथा अंग्रेजी भाषा के लिखने, पढ़ने तथा धारा प्रवाह बोलने की क्षमता का विकास करना।
2.     स्थानीय स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक शारीरिक, बौद्धिक तथा सांस्कृतिक प्रतिस्पर्धाओं एवं परीक्षाओं में विकास की भावना से भाग लेने की प्रवृत्ति का विकास कराना।
3.     छात्रों में आशावादी दृष्टिकोण पैदा करके उन्हें आदर्श जीवन जीने की कला सिखाना।
4.     छात्रों को स्वयं के प्रति, परिवार, समाज, देश, राष्ट्र एवं विश्व के प्रति कर्तव्य बोध कराना ।
5.     छात्रों का शारीरिक, प्राणिक, मानसिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक विकास करना।
6.     छात्रों को नवीनतम ज्ञान-विज्ञान की जानकारी देते हुए उनकी शैक्षिक एवं तकनीकी प्रतिभा का विकास कराना।
7.     छात्रों का गौरवशाली भारतीय इतिहास के माध्यम से महापुरुषों के प्रति श्रद्धा एवं सम्मान तथा देश, धर्म और संस्कृति के प्रति ध्येयनिष्ठा का भाव जगाना।